टूट सकता है 102 साल का रिकॉर्ड-सब जलमग्न


निर्धारित समयावधि के अनुसार आज मानसूनी सीजन का आखिरी दिन होना चाहिए। प्रत्येक वर्ष भारत में मानसून 1 जून से शुरू होकर 30 सितंबर तक खत्म हो जाता है। यह बात और है कि इस बार जाने के समय इंद्रदेव आने का आभास करा रहे हैं। आलम ये है कि आज की बारिश सितंबर माह में होने वाली सर्वाधिक बारिश का 102 साल का रिकॉर्ड तोड़ सकती है। पिछले 6 साल में ये पहला ऐसा मानसूनी सीजन है, जिसमें सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है। यूपी व बिहार में जंगल-जमीन-अस्पताल से लेकर जेल तक सब जलमग्न हो गए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में कैदियों को शिफ्ट करने की नौबत आ गई है।


मौसम विभाग के अनुसार पिछले 6 साल में पहली बार इस मानसूनी सीजन के दौरान सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है। चार माह में हुई कुल बारिश ने 25 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। पूरे देश में 29 सितंबर तक सामान्य बारिश का आंकड़ा 877 मिमी रहता है। इस बार अब तक 956.1 मिमी बारिश हो चुकी है, जो सामान्य से 9 फीसद अधिक है। मानसून का मिजाज बता रहा है कि ये आंकड़ा अभी और बढ़ेगा। मालूम हो कि इस वर्ष मानसून ने देर से दस्तक दी थी। शुरूआत में मानसून की रफ्तार काफी धीमी थी। जून में सामान्य से 33 फीसद कम बारिश रिकॉर्ड की गई थी


सितंबर के महीने का आज अंतिम दिन है और अब भी पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार में बारिश का दौर जारी है। सितंबर में पूरे देश में 247.1 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 48 फीसद ज्यादा है। मौसम विभाग के रिकॉर्ड में वर्ष 1901 के बाद सितंबर माह में हुई सर्वाधिक बारिश का ये तीसरा सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। आज (सोमवार को) भी इसी तरह बारिश जारी रही तो 1983 में हुई 255.8 मिलीमीटर बारिश का रिकॉर्ड टूटना तय है। मौसम विभाग ने सोमवार को भी पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में भारी बारिश की आशंका के मद्देनजर रेड अलर्ट जारी किया है। कुछ अन्य जिलों में भी ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। मालूम हो कि 1983 के अलावा सितंबर 1917 में इससे ज्यादा 285.6 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी। मौसम विभाग के अनुसार अभी कम से कम चार-पांच दिन तक तो मानसून अलविदा कहने वाला नहीं है। इसके और लंबा खिंचने की संभावना है


मौसम विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य से कम बारिश में भी बाढ़ के हालात दो ही वजहों से बन सकते हैं। एक तो हमने जलस्नोतों के जलग्रहण क्षेत्र को कम कर दिया हो और जलनिकासी के रास्तों को खत्म कर दिया हो। दूसरी वजह भी मानव जनित ही है। अगर बारिश की आवृत्ति और प्रवृत्ति में बदलाव दिख रहा है तो यह कुदरत से इंसानी छेड़छाड़ का खामियाजा है। यानी पूरे सीजन के दौरान संतुलित बारिश न होकर आखिर के कुछ दिनों में यकायक भारी बारिश की वजह मौसम चक्र में गड़बड़ी से जोड़कर देखा जाना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग से प्रकृति दुनिया के कई हिस्सों में ऐसी तबाही दिखाने लगी है।